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वो तो बस माँ थी

फुर्सत के दिन/fursat ke din
फुर्सत के दिन/fursat ke din
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वो तो बस माँ थी
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वो तो बस माँ थी जो सहम जाती थी मेरे रोने से
जिसे ,खुशबु आती थी मेरे गीले बिछोने से
मुझे वजूद मिला ‘वो ‘कहती है उस रब्ब से
मुझे पता है मै हूँ तो सिर्फ माँ के होने से
मेरी हर हार पे रोई है मुझी से छुपकर माँ
मेरी हर “जीत” है बस इस डर के होने से
रो देती है जीत जाने पर मुझ से लिपट कर माँ
वार दूँ जन्नत भी मै उसके यूँ रोने पे
आज भी जब रुक जाती है राह एक कोई
निकलती हैं नई राहें उसके आँचल के एक कोने से
वो तो बस माँ है जो सहम जाती थी मेरे रोने से
जिसे ,खुशबु आती थी मेरे गीले बिछोने से

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