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दीपमाला

फुर्सत के दिन/fursat ke din
फुर्सत के दिन/fursat ke din
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दीपमाला से सज़ा सारा शहर,

दिल की गली फिर भी अँधेरी रह गई

जाने कहाँ हम खो गए ,खुशयां हमारी

अब हंसी बस तेरी यां मेरी रह गई

कान फोडू शोर की “तहजीब” में सब खो गए

घर में” माँ” फिर से अकेली रह गई

अब तो मेरे घर भी चूल्हे चार है

गाँव पूरा एक चूल्हा ,बस पहेली रह गई

चार आने में तभी चलता था घर

घर चला जब आज मै खाली हथेली रह गई

hanthi

उजाले भी नहीं आते बिना रिश्वत के घर

जब से “बहना”सत्ता की सहेली हो गई

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