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रामलीला का मंचन था अंतिम दौर में
छिपता फिर रहा था रावण
श्रीराम के बाणों से
गिरता , फिर उठ खड़ा होता
फिर गिरता ,फिर उठ खड़ा होता बार बार
तभी राम को याद आई विभीषण की एक बात
और फिर चला एक बाण नाभि पर
गिर गया रावण निष्प्राण
गूँज उठे जय करे श्रीराम के
मन गई विजय दशमी
तभी सहसा कही मेरे करीब
गूंज उठा एक अट्टाहस हा हा हा हा
मैंने सहम कर देखा चहु और?
कोई होता तो नजर आता ?
पर ,फिर वही हंसी हा हा हा हा
कोई तो था
जो डरा रहा था मुझे
कर के साहस मैंने पूछा “कौन
बोला”वही रावण
जिसे सब जमझते है”मर गया ”
मैंने कहा “तो ”
अरे मुर्ख मै तो हूँ अमर
समझा राम ने भी
सूख गया मेरी नाभि से अमृत
पर नहीं वह भ्रमजाल था मेरा
उस युग में पाने कामुक्ति तांकि
इस युग में बढ़ा सकू अपनी राक्षश सेना
और पा सकू विजय राम पर
मैंने “पूछा क्या ये हुआ ?
जवाब अप्रत्याशित” हाँ ”
ये देख तेरे राम मेरी कैद में
मैंने देखा चौक कर”सचमुच”
मगर हुआ कैसे ये सब
वो बोला” मेरे परम पुत्रो किया तुम्ही ने
ये सब मेरे लिए
उस युग में अकेला पड़ गया था राम के विरुद्ध
पर आज मेरे सेवक ,मेरे चहेते है हर जगह
हर घर में ,तेरे घर में भी
मैंने कहा “नहीं ये नहीं हो सकता”
वो गरजा “अरे तू भी तो है उन्ही में
नहीं विश्वास तो देख
खुद को आईने में
झांक अपनी आखो में
तुझे मै ही मै नजर आऊंगा
तेरी नस नस में
और राम भी नजर आयेंगे
मगर
सिर्फ
घर के कोने में बने छोटे से
मंदिर जैसे कैद खाने में
तुझ में नहीं ,किसी में भी नहीं
हा हा हा हा हा हा …………………….
….. गूंजता रहा ये अट्टाहस मेरे कानो में
नीद टूट जाने तक …………………….
malkeet सिंह जीत
बंडा शाहजहांपुर
9935423754
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