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परिवर्तन “कंक्रीट के जंगल “

फुर्सत के दिन/fursat ke din
फुर्सत के दिन/fursat ke din
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गाँव ,शहर ,घर ,गली, मोहल्ले सभी रंग बिरंगी झंडियों से सजे हुए थे |भीड़ के रेले इधर से उधर जा रहे थे |मेला सा लगा महसूस हो रहा था |राधेश्याम जी मंत्री बनाने के बाद पहली बार नगर भ्रमण पर थे |जगह जगह बैनर लगाये गए थे ,जिन्हों ने वोट दिया था उनके द्वारा भी ,जिन्हों ने नहीं उनके द्वारा भी ‘सब चलता है राधेश्याम जी भी तो पार्टी बदल के मंत्री बने थे
सब लालची है ,सब धोके बज है ,हमें लड़ते है आपस में जाट बिरादरी के नाम पर खुद मौका देखते ही पला बदल लेते है कितना हो हल्ला मचाया था इन्होने बिरादरी का ,हम मजलूम है ,हम पिछड़े है ,हमारा शोषण तभी बंद होगा जब ह्मरिऊ पार्टी की सरकार बनेगी हमारे नेता मुख्यमंत्री  बनेगे
कितने दिन हुए अभी इस भाषण को उंगलियों पर गिना जा सकता है क्या अब बिरादरी मजलूम नहीं रही ?हूँ ह पार्टी बिरादरी सब धोके बज है |सब खुनी है, मेरे बेटे के खुनी गयादीन सोचते सोचते जोर जोर से चिल्लाने लगा -सब खुनी है मेरे बेटे के खुनी ,सब खुनी है ,कोई इस और ध्यान देता उससे पहले ही नेता जी का काफिला आ चूका था |गयादीन की आवाज करों के छोर में दब गई |
लेकिन मन के भीतर होते द्वन्द को कौन रोकता ?अब गया दीं के हाथो में एक पत्थर  था और सामने मंत्री जी की कार……कोई कुछ समझता उससे पहले ही पत्थर अपनी मंजिल प् चूका था |पूरा काफिला जहाँ का तहां रुक गया सबकी निगाहे गयादीन पर थी जो फटे कपड़ों में दबे कांपते बदन को एक डंडे के सहारे रोकने में जूता था |कई गाडियो के दरवाजे खुले  और  गयादीन पर कई हाँथ छूटते चले गए  | फिर नेता जी भी गाड़ी से उतर पड़े |भीड़ की काई से निकल कर नेता जी गयादीन के सामने थे | ‘कौन है बे ,जानता  नहींमुझे ,मंत्री हूँ मंत्री हराम…………….मुझ  पर पत्थर मारा “छोडिये मंत्री जी पागल है जाने दीजिये \एक कार्यकर्ता   का बिल्ला लगा युवक आगे बढ़ा ‘जाने दूँ कौन तेरा ?’मेरे दोस्त का बाप है मंत्री जी  आपके चुनाव में हुई हिंसा में जो नरेश मर था |उसका बाप बेचारा बेटे के गम में पागल हो गया ‘ नेता जी ने उसे घिनौनी दृष्टी से घुर कर देखा – स्साला ………………| फिर काफिला यह जा वह जा |गयादीन अब भी सूखे पत्ते की तरह कांप रहा था अकेला लाठी के सहारे |एक कंक्रीट के जंगल में …………..

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