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कुलक्षणी – बछिया और ……

फुर्सत के दिन/fursat ke din
फुर्सत के दिन/fursat ke din
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राजेश्वरी आज बड़ी प्रसन्न थी उसकी बचपन की सहेली सुषमा  काफी दिनों बाद मिलने आई थी ,फिर बचपन के सखा  प्रौढ़ावस्था में ज्यादा अपना पन देते है
कैसी है राजो .,सुषमा ने बैठते हुए पूछा-ठीक है सब
हाँ ठीक ही समझ ,अपनी सुना बेतेका क्या हाल है,नौकरी पक्की हुई के अब  भी मास्टरनी बहु की कमाई से कम चलता है
नहीं,अब तो वो भी लगा है काम पर ,उस कलमुही की तनख्वाह में तो उसकी अपनी लिपस्टिक बिंदी ही पूरी नहीं होती
“दादी दादी कलमुही क्या  होता है ”
चुप बैठ चुड़ैल  ‘राजेश्वरी की डांट खा कर 9  साल की दिव्या फिर किताबो में खो गई ‘
क्या करता    है
उसी स्कुल में बाबु है जहाँ जोरू पढ़ाती है
मै अभी आई …………….  ले खीस  खा
‘राजेश्वरी बैठते हुए’गाय ने बछिया दी है
बधाई हो फिर तो राजो
हा ,बधाई तो ठीक है पर अबकी बछिया न देती तो बेंच देती कसाई को   चार बेंत  ब्याई है निखटटे बछड़े
“दादी दादी निखटटे  क्या होते है ”
तूं चुप नहीं रहेगी- ‘राजेश्वरी ने एक बार घुर के देखा तो सहमी  दिव्या फिर किताबें  उलटने पलटने लगी ‘
बहु आ गई अस्पताल से ?सुना है फिर लड़की जनी है ,और वो भी बड़े आपरेशन से ?
हाँ सुशीला यही तो रोना है |इस गाय से बछिया मांगो तो बछड़े  देती है उस कुलक्षणी से नर मांगो तो मादा जनती है
दिव्या फिर बोल बड़ी ‘दादी दादी  कुलक्षणी क्या होती है
राजेश्वरी इस बार अपना गुस्सा रोक न सकी  ‘कुलक्षणी है तेरी माँ जिसने तुझे जना “एक छोरा न जन सकी
राजेश्वरी कुछ और कहती उससे पहले दिव्या फिर बोल पड़ी
फिर तो दादी  बड़ी नानी और आप भी तो कुलक्षणी है जिन्हों ने आप को और आप ने गीता बुआ को जन्म दिया ?”और दिव्या किताबे फर्श पर फेंक अपनी माँ के कमरे में दौड़ गई

राजेश्वरी कभी फर्श पे पड़ी किताबो को देखती तो कभी शुशीला को ,जो खुद एक बुत बनी खड़ी थी

मलकीत सिंह “जीत”

9935423754

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