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एक ज्वलंत मुद्दा> ग्राम प्रधान एवं ग्रामीण विकास

फुर्सत के दिन/fursat ke din
फुर्सत के दिन/fursat ke din
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विकास का रास्ता खेत खलिहान एवं गाँवो से होकर गुजरता है यह युक्ति सत्य भी है जिसको कि आधार बनाकर सरकारी एंव गैर सरकारी स्तर से कई तरह की योजनाये भी तैयार की जाती है इसी पर अमल करते हुए पंचायती राज को भी अमली जामा पहनाने की कोशिशे होती रहती है
स्वयं सहायता समूह, प्रधानमंत्री स्वरोजगार योजना, रोजगार गारंटी योजना आदि सभी उत्तर प्रदेश, बिहार आदि गाँवो से बने प्रदेशो को विकास के पथ पर से जाने वाली योजनाये है जिनका कि जिनका की सफल होना ब्लाक एवं ग्राम पंचायत  स्तर के प्रबंधन पर निर्भर है |खास तौर से ग्राम प्रधान ,ग्रामविकास अधिकारी ,एवं ग्रामीण अंचल के बैंक आदि के विशेष प्रयासों पर ,जिसमे की ग्राम प्रधान विकास एवं ग्रामीणों के बिच की सबसे मुख्या कड़ी है | यदि किसी ग्राम पंचायत का प्रधान साक्षर एवं जागरूक होगा तो वह ग्रामवासियो का उचित मार्गदर्शन कर सकेगा ,किन्तु विकास की रह का सबसे बड़ा रोड़ा भ्रष्टाचार हर जगह फैला है जिससे किग्राम पंचायत स्टार से लेकर राष्ट्रीय नेता तक अछूते नहीं है |
बात ग्रामीण भारत कि है इस लिए यही से शुरू करते है ,एक ग्राम प्रधान तीन  ,चार या पांचग्रामो का मुखिया होता है |जिसके कि जिम्मे ग्राम पंचायत स्तरकि योजनायो के क्रियान्वयन का कार्य होता है ,जैसे कि विद्यालयो के अंतर्गत बनने वाले मिड डे  मील ‘मध्यावधि भोजन ‘ कि व्यवस्था करना ,उसकी गुणवत्ता देखना , इंड् डे धन ,राशन से ले कर उसे वितरण तक का ध्यान रखना जिसमे कि प्रधानाध्यापक (जहाँ प्रधानाध्यापक नहीं है शिक्षा मित्र )बराबर के जिम्मेदार /हिस्सेदार होते है सप्ताह भर के मीनू का हिसाब प्रधान व् प्रधानाध्यापक के उचित तालमेल से ही सही बैठता है ,अन्यथा अधिकतर स्कूलों में यां तो मिड डे  मील (मध्यावधि भोजन) कागजों मात्र में बनता है या बनता ही और आपसी खीचतान में पैसा फंड में ही पड़ा रह जाता है |
और जहाँ पर  बनता भी है |वहां पर  मध्यावधि भोजन छात्र छात्राव का भला न कर के शैक्षिक रूप से नुकसान ही करता है ,अध्यापको (शिक्ष मित्रो) का पूरा दिन (यदि अन्यसरकारी योजनाओ में ड्यूटी न लगी हो तो )भोजन कि व्यवस्था में ही निकल जाता है वहीँ कुछ   समय  शिक्षण कार्य के लिए निकलता भी है तो 1 -6 वर्ष तक के बच्चों का ध्यान भी उसी भोजन पर ही लगा रहता है |
   इस के बाद ग्राम प्रधान का गठजोड़ होता है ग्राम वकास अधिकारी से  जिसके साथ मिल कर ग्रामप्रधान को ग्राम पंचायतो के सभी प्रकार के विकास कार्यो को देखना होता है  यहाँ पर भी बात आपसी तालमेल,जिम्मेदारी, व् हिस्सेदारी पर ही आ कर रूकती है |
      ग्राम्पंच्यात में खडंजा बिछाना हो नाली का निर्माण होना हो ,मिटटी का कार्य होना हो या सार्वजनिक सौचालय का निर्माण कि बात हो सभी विकास कार्यों के लिए धन अवमुक्त कराने हेतु ग्राम विकास अधिकारी कि सहमती कि आवश्यकता होती है |जो कि आज के आर्थिक युग में आपसी समझ बूझ से ही बन पाती है
    तीसरा नम्बर आता है ग्रामपंचायतो कि सब से बड़ी समस्या यानी सार्वजानिक वितरण प्रणाली (कोटा )का जिससे कि प्रत्येक ग्रामवासी सीधे तौरपर जुदा होता है |क्योकि मिटटी का तेल,चीनी ,चावल गेहूं आदि सभी वस्तुएं दैनिक जीवन कि जरुरत है जिनका समय पर व् पूर्ण वितरण हो पाना भ्रष्ट व्यवस्था में अपने आप में एक अजूबा है और यह अजूबा भी ग्रामप्रधान ,कोटेदार व् ग्रामपंचायत अधिकारी आदि कि आपसी समझ बूझ से ही हो पता है
      इके बाद ग्राम प्रधानो के जिम्मे आता है ग्राम पंचायतो के विकास कार्यों के निरिक्षण को आने वाले अधिकारिओं ,D .M ,S .D .M ,C D O आदि के कार्यक्रमों की व्यवस्था करना वृधावस्था,विधवा पेंशन ,विकलांग पेंशन आदि के फर्मो को भरवा कर जिला मुख्यालय (विकास भवन )पर पहुचना ,ग्रामीणों के आपसी विवादों का ग्राम पंचायत स्तर या थाना स्तर  पर पर निपटारा करना और फिर भी समय बचाता  है तो ब्लाक स्तर पर मीटिंग में भाग ,जिला स्तर के अधिकारीयों द्वारा आहूत मीटिंगों में पहुचना भी अनिवार्य है | यहाँ यह बात ध्यान   देने योग है कि ग्राम प्रधान का  गठजोड़ जहाँ भी है चाहें प्रधानाध्यापक से हो ,ग्राम पंचायत अधिकारी से हो या कोटेदार से यां अन्य योजनाओ से जुड़े अधिकारिओ से सभी वेतन भोगी (कोटेदार कमीशन एजेंट ) हैं  और आठ हजार से तीस हजार तक का वेतन प्राप्त करते है जबकि एक ग्राम प्रधान को मात्र 500 रु/माह 16 :6  /प्रति दिन वेतन प्राप्त होता है जो कि एक नरेगा मजदुर कि न्यूनतम 100 रु  दिहाड़ी से भी कम है और फिर भी अपेक्षा कि जाती है कि वह ईमानदारी बरतें जबकि भारत वर्ष में सभी जनप्रतिनिधियों ,सांसद ,विधायक मुख्यमंत्री ,प्रधान मंत्री राष्ट्रपति आदि सभी हजारों रु वेतन मन प्राप्त करते है |ग्राम प्रधानो को भी अपना अपने परिवार का पालन पोषण करना है , उनके लिए भी उचित वेतन की व्यवस्था होनी ताकि उन्हें अपनी आजीविका के लिए इस बन्दर बाँट पर निर्भर न होना पड़े बल्कि एक प्रहरी की तरह विकासकार्य देख सके ,और एक भय भी रहे गा की यदि मई अनियमितता कदोशी पाया गया तो मेरा पञ्च वर्षो का वेतन व् पेंशन रुक जाये गी जब की अब तक इनकी सोच यही है की जो बचा सको बचालो सर्कार हमें देती ही क्या है जो रोक दे गी ?
  मलकीत सिंह जीत
9935423754
jeetrohan@gmail.com

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