Menu
blogid : 4540 postid : 76

भ्रूण हत्या विशेष “काश वो जिन्दा होती “

फुर्सत के दिन/fursat ke din
फुर्सत के दिन/fursat ke din
  • 40 Posts
  • 567 Comments

शायद  ही  कोई  नजर  थी  जो  रिख्शे  पे  न  गयी  हो  |राजीव  की  बगल  में  बैठी  निशा   खूब 
फब  रही  थी |लेकिन  उदास  चेहरा  जैसे  चाँद  का  दाग  बन  गया  था  ;
          कितनी  ख़ुशी  ख़ुशी  दोनों  रिक्शे  पे  सवार  हुए  थे  हास्पिटल  जाने  के  लिए  | ख़ुशी
 की  बात  भी  थी  शादी  के  तीसरे  ही  महीने  निशा  उम्मीद  से  थी  |मन  जी  कई  दिन  से  राजीव 
से  कह  रही  थी  हास्पिटल  जाने   के  लिए  ,आखिर  उन्हें  निशा  से  पोते  की  उम्मीद  जो  थी  |लेकिन
हास्पिटल  से  निकलते  वक्त  राजीव  का  चेहरा  उतरा  हुआ  था  और  निशा  का  भी  | राजीव  बार  बार 
सोच  रहा  था  ‘माँ  को  कैसे  समझाऊ  गा  की  निशा  के  पेट  में  कड़का  नहीं  लड़की  है  |…….
………….. निशा  का  रो  रो  कर  बुरा  हाल  था  |कल  से  अन्न  का  एक  दाना  भी  निगला  था  |कुछ 
कमजोरी   तो  गर्भपात   के  कारण थी  और  कुछ   लगातार  रोने  से  ; माँ  -बाबूजी  कई  बार 
समझा  चुके  थे  ‘बच्चे  का  क्या  है  फिर  आजाये  गा  कमसे  कम  लड़का  तो  होगा | 
   पर  निशा  की  तो  जैसे  किसी  ने  जान  ही  निकल  ली  हो  और  एक  बुत  छोड़  दिया  हो  |आखिर  उसकी
पहली  ओलाद  को  माँ  जी  की  पोते  की  जिद  ने  छीन  लिया  था 
               निशा  गुमसुम  बैठी  सोच  रही  थी  ,क्या  लडकी  इस  संसार  के  लिए  जरुरी  नहीं  ?
है ,क्या  लड़की  के  बिना  परिवार  चल  सकते  है ?,क्या  उसकी  माँ  ने  उसे  जन्म  नहीं  दिया  था  ?  
      राजीव  आये  आज  आफिस  से   वादा  ले  लू  गी  की  अब लड़का हो या  लड़की  मै  दोबारा  गर्भपात 
नहीं कराउगी   |अपने  जीतेजी  अपनी  ओलाद  को  ऐसे  मरने  नहीं  दुगी |
        राजीव  चौथे  दिन  घर  लौट   रहा  था  |तीन  सौ   किलोमीटर  का  सफ़र  पता ही  नहीं  कब 
निशा  के  ख्यालो  में  बीत  गया  |ज्यो  ज्यो  अपना  शहर  पास  आता  जा  रहा  था  लगता  था  train
जानबूझ  कर  धीरे  चलने  लगी  थी
     तभी  एक  जोर  के  धमाके  के  साथ  ट्रेन  रूकती  सी  लगी ,पूरे  डिब्बे  में  जैसे  भूचाल 
सा  आ  गया  था  | ऊपर  की  सीटों  का  सामान  यात्रिओ  के  ऊपर  गिरता  नजर  आया   जब  तक  कोई  कुछ
 समझ  में  आता  कोई   भारी  चीज  सर  पर  लगी  और  राजीव  की  चेतना  लुप्त  हो  गयी |
             हास्पिटल  में  चारो  और  चीख  पुकार  सी  मची  थी  राजीव  को  आभी  अभी  होश  आया 
था  निशा  बैड के  पास  पड़ी  कुर्सी  पर  उंघती  सी  बैठी  थी | जब  से  शिनाख्त  के  बाद 
राजीव  को  प्राइवेट   हास्पिटल  में  शिफ्ट  कराया  था  निशा  ,माँ जी  , व  बाबूजी   बारी  बारी  से 
उसके  पास  उसके  पास  बैठ  ते  थे  | आज  36 घंटो  के  इंतजार  के  बाद   उसने  आँखे  खोली  थी
फिर  डॉ .ने  नीद  का   इंजेक्शन  दे  कर  सुला  दिया  था 
       डॉ . के  कहे  शब्द  बार  बार  राजीव  के  जहाँ  में  घूम  रहे  थे  -सर  की  चोटें  तो  हफ्ते
 दस  दिन में  ठीक  हो  गए  गी  लेकिन  पेट  के  निचे  का  हिस्सा  वजनी  भार  में  दबा  रहने  के  कारण 
चलने  लायक  आप  दो  से  तीन  महीने  में  ही  हो  पाए  गे  | मुझे  अफ़सोस  के  साथ  कहना  पड़
 रहा  है  की  चोटों  की  वजह  से  गुप्तांग  की  शुक्र्स्दु  वाली  नलिकाए  डेड   हो  चुकी  हैजिसके  कारण 
आप  वैवाहिक  जीवन  तो  नार्मल ही व्यतीत  करेंगे  परन्तु  संतान  सुख  न  पा  सके  गे  ……..
….. एक्सीडेंट  के  बाद तो  जैसे  पूरा   घर  ही   उदासियो  में  घिर  गया  था  |राजीव  अब  चलने  फिरने 
लगा  था  पर  खुशिओ  का  कोई  निशान  घर  के  किसी  भी  सदस्य  के  चेहरे  पर  न  था  |
         आज  सभी  एक  ही   बात  सोच  रहे  थे  की  काश  निशा  का  गर्भपात  न  कराया 
होता  ,अगर  लड़की  पैदा  होती  तो  क्या  था  होता  तो  अपना  ही  खून  राजीव  और  निशा  की अपनी  ओलाद
 एक  जीने  का  सहारा  -बे  ओलाद  होने  का  कलंक  तो  न  होता  – माँ  जी  की  पोते  की  जिद  ने  उन्हें
 पोती  से  भी  दूर  कर  दिया  था  |इतना  दूर  की  अब  वो  भी  यही  सोचती  थी की  काश   वो  जिन्दा  होती  उनकी 
अपनी  पोती  “काश  वो  जिन्दा  होती

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply to r d rayCancel reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh