फुर्सत के दिन/fursat ke din
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उसके मन के सारे दुःख ढकने को शायद छोटी है
उसके तन पे देखी मैंने फिर इक पूरी धोती है
आखों के सब आंसू पी उसने हसना सीखा होगा
तुम क्या जानो दिल ही दिल में दिन भर कितना रोती है
उसके तन पे देखी मैंने ……………..
उसकी आँखों के दो आंसू मुझको सूरज लगते है
भूंखे बच्चों की खातिर ,जो सर पर ईंटे ढोती है
उसके तन पे देखी मैंने ……………..
कैसे रोकूँ आंसू अपने मुझको ये बतलाओ “जीत”
जिस पर हस्ते थे हम सारे अपनी ही वो बेटी है
उसके तन पे देखी मैंने ……………..
उस की इस लाचारी की क्या कीमत मांगी दुनिया ने
तन को ढकने की खातिर वो तन को बेंच के लौटी है
उसके तन पे देखी मैंने फिर इक पूरी धोती है
उसके तन पे देखी मैंने फिर इक पूरी धोती है
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